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ग़ज़ल
मयस्सर आ चुकी है सर-बुलंदी मुड़ के क्यूँ देखें
इमामत मिल गई हम को तो उम्मत छोड़ दी हम ने
शहज़ाद अहमद
ग़ज़ल
दिल-ए-शैदा की हक़ीक़त मिरे मौला क्या है
जान हाज़िर है मिरी आप से अच्छा क्या है
मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़
ग़ज़ल
कोई हसीन है मुख़्तार-ए-कार-ख़ाना-ए-इश्क़
कि ला-मकाँ ही की चौखट है आस्ताना-ए-इश्क़
अहमद हुसैन माइल
ग़ज़ल
हवास-ओ-होश को छोड़ आप दिल गया उस पास
जब अहल-ए-फ़ौज ही मिल जाएँ क्या सिपाह करे
मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल
नबील अहमद नबील
ग़ज़ल
संग-ए-फ़ुर्क़त मार कर मत जाओ मुझ को छोड़ कर
दिल का शीशा तोड़ने से यार क्या मिल जाएगा
हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी
ग़ज़ल
मैं कब से पूछ रहा हूँ शराब है कि नहीं
कुछ इस सवाल का साक़ी जवाब है कि नहीं
वहीदुद्दीन अहमद वहीद
ग़ज़ल
आ गले मिलने से पहले क्यूँ न मिल कर देख लें
दिल के तह-ख़ाने में कोई चोर दरवाज़ा न हो
ग़ौस मोहम्मद ग़ौसी
ग़ज़ल
कैफ़-ए-अदा भी है निगह-ए-पुर-फ़ितन के साथ
लगती है दिल पे चोट मगर बाँकपन के साथ